“सबको जय सियाराम 🙏🏻”

पाठकों;
स्वाध्याय का शाब्दिक अर्थ तो सभी जानते ही हैं। लेकिन एक दृष्टिकोण से; शास्त्रों के भी अध्ययन को “स्वाध्याय” कहते हैं। शास्त्रों के स्वाध्याय से प्रत्येक ब्यक्ति अपने जीवन काल में ही ज्ञान तथा भक्ति दोनों (जो मनुष्य जीवन के मूलतः उदेश्यों में से एक है) को प्राप्त कर सकता है। साथ ही साथ यह विद्या (सा विद्या या विमुक्तये) ग्रहण का सबसे उत्तम रूप भी गुरु चरणों के द्वारा समय-समय पर बताया गया है।
अगर इसको (स्वाध्याय) अपने जीवन में अपना लिया जाए तो ज्ञान के संग्रह में मन को एकाग्र करने में बहुत सहायक सिद्ध होता है। आज कल के भागा-धापी वाले जीवन शैली में जीवन को संतुलित एवं शांत रखने में भी यह बहुत असरदार होता है। साथ ही साथ यह ब्यवस्था “आत्मविश्वास” एवं “श्रद्धा” की भी जननी है”।
सत् शास्त्र का पढ़ना; “मनन करना” या “उपदेश करना” आदि भी “स्वाध्याय” माना जाता है। इसे ही “परम तप” कहा जाता है।

यहाँ यह पटल एक प्रयाश करने की कोशिश है; जहाँ “स्व में स्व की खोज” से उपजे अध्ययन/अनुभवों, चिंतन-मंथन, गुरु कृपा एवं इष्ट से प्राप्त “ज्ञान और भक्ति” से सर्वजन हितार्थ धर्म में या जीवन के सामयिक शंकाओं का समाधान “समयोचित” ढंग से किया जा सके।

साथ ही साथ आप सभी पाठकों से भी निवेदन है कि, इस सुविधा से अपनी-अपनी दुविधाओं का समापन करने का अवसर प्रदान करें।

अपना परिचय देते हुए आप सभी विद्वत्वरेण्यों को; मेरे लिये बड़ी हास्यास्पद बात लगती है क्योंकि ऐसा महसूस हो रहा है कि एक जुगनू सूर्य को प्रकाश का परिचय करा रहा है।
लेकिन यह आप सबके पुण्य आशीर्वाद का प्रसाद ही है जिसे पान कर “पंचामृत” रूप में उपस्थित हूं।
अगर कहीं; किसी रूप में पंचामृत में किसी मिश्रण की अधिकता या न्यूनता हो जाये तो अबोध समझ कर क्षमा प्रदान करेंगें ऐसा इस विद्यार्थी की अभिलाषा और विश्वास है।
मैं डॉ. अविनाश भारद्वाज “रामभद्र” स्वर्णिम “बिहार” के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से भरे “सिवान” जिले के भगवानपुर प्रखंड के पिपरहियाँ गांव से आता हूँ तथा मेरा छोटा सा शैक्षणिक एवमं कार्य परिचय इस पटल पर उपलब्ध है।

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